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व्याधिक्षमत्व बढ़ाने के लिये 168 मिनट प्रति सप्ताह वनानुभव लीजिये- डॉ अनुपम आदित्य मिश्र, एम डी

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💫प्राचीन भारत के महर्षि-वैज्ञानिक पुनर्वसु आत्रेय को चिकित्सा व स्वास्थ्य-रक्षण के एक ऐसे सिद्धांत का जनक माना जाता है जिसे आज वनानुभव और प्रकृति-अनुभव (फ़ॉरेस्ट -एक्सपीरियंस, नेचर-एक्सपीरियंस) आदि नामों से जाना जाता है| स्वास्थ्य-रक्षण और रोगोपचार में प्राकृतिक स्थलों की भूमिका का आयुर्वेद में कम से कम 1000 साल ईसा पूर्व से वर्णन प्राप्त होता है| हाल ही में हुई शोध अब यह निर्विवाद सिद्ध करती है कि प्रकृति का सानिध्य हमारे संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक और बायोफिज़ियोलॉजिकल स्वास्थ्य में सुधार करता है| परन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि वर्ष 2022 तक की शोध अब यह निर्विवाद सिद्ध कर चुकी है कि वनानुभव से ह्यूमन नेचुरल किलर सेल्स की क्रियात्मकता बढ़ने और इन्फ्लेमेशन कम होने सहित अनेक रास्तों के माध्यम से इम्म्यूनिटी भी बढ़ती है|

💫लगभग 5000 वर्ष पूर्व की बात है| आत्रेय के शिष्य अग्निवेश ने अपने गुरु से एक प्रश्न किया: “भगवन! देखने में आता है कि हितकारी आहार का उपयोग करते हुये भी कुछ लोग रोगी हो जाते हैं, जबकि अहितकारी आहार लेते हुये भी कुछ लोग निरोगी देखे जाते हैं। ऐसी स्थिति में क्या अच्छा है और क्या बुरा इसकी पहचान कैसे की जाये?” इस प्रश्न का जो उत्तर आत्रेय ने दिया, वह आज भी यथावत विज्ञान-संगत है।

💫आत्रेय का उत्तर था: “अग्निवेश! हितकारी आहार करने वाले लोगों में आहार के कारण होने वाले रोग उत्पन्न नहीं होते और हितकारी आहार लेने मात्र से समस्त रोगों का भय दूर नहीं हो जाता। हानिकारक भोजन के अलावा भी रोगों के तमाम कारण, जैसे ऋतुओं का विपरीत होना, प्रज्ञापराध या जानबूझकर गलती करना, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध का अतियोग, मिथ्या योग एवं विषम योग आदि ऐसे कारण हैं जो उचित भोजन लेने के बावजूद भी मनुष्य को बीमार कर देते हैं। इसीलिये हितकारी आहार लेने वाले रोगी हो जाते देखे जाते हैं। हानिकारक आहार का उपयोग करने वालों में पथ्य, आहार, व शरीर की स्थिति में भिन्नता होने से हानिकारक आहार तुरन्त हानि नहीं पहुंचा पाते। सभी अपथ्य बराबर दोष वाले नहीं होते, न ही सभी दोष बराबर बलवान होते, और न सभी शरीर व्याधिक्षमत्व या रोग प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न होते (न च सर्वाणि शरीराणि व्याधिक्षमत्वे समर्थानि भवन्ति| च.सू.28.7)। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक ही अपथ्य आहार जगह, समय, संयोग, वीर्य, व मात्रा की भिन्नता के कारण या ज्यादा खा लेने से और अधिक अपथ्य हो जाता है। वही दोष विविध कारणों से, विरुद्ध चिकित्सा वाला, धातुओं में पहुंचा हुआ, शरीर के प्राणायतनों में उत्पन्न, मर्म पर चोट करने वाला, अत्यंत कष्टदायी अतिशय जल्दी रोगों को उत्पन्न करने वाला होता है|” अंत में आत्रेय यह भी बताते हैं कि मूल रूप से शरीर की बनावट भी नैसर्गिक व्याधिक्षमत्व पर प्रभाव डालती है| “बहुत मोटे या बहुत दुबले लोग, रक्त, मांस, व अस्थियों के सुसंगठित न होने के कारण बेडौल शरीर वाले लोग, दुर्बल, अल्पसत्त्व या कमजोर मनोबल वाले लोगों में रोगों को सहने की क्षमता नहीं होती। जबकि इनके उलट लक्षणों वाले लोगों में रोगों को सहने की क्षमता होती है। इन अपथ्य आहारों, दोषों व शरीर की भिन्नता के कारण बीमारियाँ भी कम या ज्यादा, जल्दी या देर से उत्पन्न होती हैं।”

💫जिस व्यक्ति का सहज (इनेट) या युक्तिकृत (डेराइव्ड) व्याधिक्षमत्व मज़बूत है वह मुश्किल से ही बीमार पड़ता है। यदि बीमार पड़ भी जाये तो बीमारी अपना बल मुश्किल से ही दिखा पाती है| व्याधिक्षमत्व में दो शब्द निहित हैं, व्याधि एवं क्षमत्व| व्याधि का तात्पर्य शरीर की धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा, शुक्र) में विषमता उत्पन्न होना है| क्षमत्व से तात्पर्य इस विषमता को न होने देने की क्षमता है। मानसिक बीमारियों के सन्दर्भ में सत्त्व गुण जितना अधिक होगा, व्याधिक्षमत्व उतना ही बेहतर होगा| शरीर में सहज व्याधिक्षमत्व के सन्दर्भ में यह बात महत्वपूर्ण है कि शरीर में दुरुस्त मांसपेशियों, संरचना, स्वरुप व मज़बूत इन्द्रियों वाला व्यक्ति रोगों के बल से कभी प्रभावित नहीं होता| भूख, प्यास, ठंडी, गर्मी, व्यायाम को ठीक से सहन करने वाला, सम अग्नि वाला, बुढ़ापे की उम्र में ही बूढ़ा होने वाला, मांसपेशियों के सही चय वाला व्यक्ति ही स्वस्थ है (च.सू.21.18): सममांसप्रमाणस्तु समसंहननो नरः| दृढेन्द्रियो विकाराणां न बलेनाभिभूयते|| क्षुत्पिपासातपसहः शीतव्यायामसंसहः| समपक्ता समजरः सममांसचयो मतः||
आधुनिक वैज्ञानिक संदर्भ में व्याधिक्षमत्व को इम्यूनिटी कहा जाता है। यह प्रतिरक्षा तंत्र संक्रमण, बीमारी या अन्य अवांछित तत्वों के आक्रमण से बचने के लिये शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है। व्याधिक्षमत्व में कमी होने से शरीर इम्यूनो-कॉम्प्रोमाइज्ड स्थिति में आ जाता है| ऐसी स्थिति में शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने से रोगजनन आसानी से होता है। इम्यूनिटी किसी व्यक्ति के शरीर में विशिष्ट एन्टीबॉडी या श्वेतरक्त कौशिकाओं की क्रिया से किसी विशेष संक्रमण, विषाक्त पदार्थ या हानिकारी जीवन-शैली से होने वाले रोगों का प्रतिरोध करने की क्षमता के रूप में समझा जाता है।

💫आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार इम्यूनिटी मूलतः दो प्रकार से समझी जा सकती है: इनेट (जन्मजात) और एडाप्टिव (अनुकूलनीय)। इनेट-इम्यूनिटी प्रतिरक्षा की पहली पंक्ति है जो पैथोजेन को मारने वाली कोशिकाओं जैसे न्यूट्रोफिल और मैक्रोफेज द्वारा संपादित की जाती है। किसी विषाणु का संक्रमण होने पर ये किलर-सेल्स तेज गति से सबसे पहले अपना काम करती हैं। एडाप्टिव- इम्यूनिटी की क्रियात्मकता तुलनात्मक रूप से धीमी होती है| इस तंत्र में टी-कोशिकाओं, बी-कोशिकाओं और एंटीबॉडी जैसी व्यवस्था है जो विशिष्ट रोगजनकों पर प्रतिक्रिया देता है। यह तंत्र इम्यून-मेमोरी के लिये भी उत्तरदायी है जो मानव में पहले हुई कुछ बीमारियों को पहचानता है और दुबारा नहीं होने देता। मेमोरी बी-सेल नामक कोशिकायें पैथोजेन को पहचानती हैं, और दुबारा संक्रमण होने पर त्वरित-प्रतिक्रिया करते हुये संक्रमण को निष्फल करने का काम करती हैं। हालाँकि नवीन शोध यह बताती है नेचुरल-किलर कोशिकायें भी एडाप्टिव-इम्यूनिटी प्रतिक्रिया का प्रदर्शन कर सकती हैं| जो भी हो, गड़बड़ तब होती है जब कुछ वायरस या माइक्रोब्स अपने पूर्व रूप से म्यूटेट या उत्परिवर्तित होकर इम्यून-मेमोरी (प्रतिरक्षा स्मृति) को गच्चा दे देते हैं।

💫व्याधिक्षमत्व को परिभाषित करते हुये चरकसंहिता के दिग्गज टीकाकार आचार्य चक्रपाणि ने लगभग 900 साल पहले लिखा (च.सू. 28.7 पर चक्रपाणि): व्याधिक्षमत्वं व्याधिबलविरोधित्वं व्याध्युत्पादप्रतिबन्धकत्वमिति यावत्| तात्पर्य यह है कि व्याधिबल की विरोधिता व व्याधि की उत्पत्ति में प्रतिबंधक होना व्याधिक्षमत्व है। अभिप्राय यह है कि शरीर में उत्पन्न बीमारी के बल या तीक्ष्णता को रोकने और बीमारी की उत्पत्ति को रोकने वाली क्षमता को व्याधिक्षमत्व कहा जाता है।
💫व्याधिक्षमत्व को बल, ओज और प्राकृत श्लेष्मा के रूप में भी जाना जाता है| बल वह शक्ति है जिसके द्वारा शरीर विभिन्न चेष्टाओं से कार्य संपन्न करता है। इस कार्योत्पादक शक्ति को व्यायाम-शक्ति से जाना देखा जाता है। बल के तीन प्रकार हैं (च.सू.11.36): त्रिविधं बलमिति- सहजं, कालजं, युक्तिकृतं च| सहजं यच्छरीरसत्त्वयोः प्राकृतं, कालकृतमृतुविभागजं वयःकृतं च, युक्तिकृतं पुनस्तद्यदाहारचेष्टायोगजम्| बल तीन प्रकार के होते हैं| सहज बल शरीर और मन पर आधारित होता है| उम्र के साथ शरीर की वृद्धि से प्राप्त बल को कालज बल कहा जाता है| खान-पान, जीवन-शैली और व्यायाम आदि की युक्ति से प्राप्त बल को युक्तिकृत बल कहा जाता है| रोग से रक्षा करने वाले को बल कहा जाता है। व्याधिक्षमत्व को ओज और ओज को बल के रूप में भी समझा जाता है (सु.सू.15.19) रसादीनां शुक्रान्तानां धातूनां यत् परं तेजस्तत् खल्वोजस्तदेव बलमित्युच्यते स्वशास्त्रसिद्धान्तात्। रसादिक तथा शुक्रान्त धातुओं के उत्कृष्ट सार भाग को ओज कहते हैं तथा आयुर्वेद के अनुसार उसी का दूसरा नाम बल है| यही बल व्याधियों से शरीर की रक्षा करता है। यहाँ एक बात समझना आवश्यक है ओज और बल हालाँकि एक कहे गये हैं किन्तु ओज को कारण और बल को कार्य माना जाता है| ओज का रूप, रस और वर्ण होने से द्रव्य है जबकि बल इसका कार्य है| यहाँ व्याधिक्षमत्व के सन्दर्भ में बल (कार्य) और कारण (ओज) को एक मान लिया जाता है| इसी सन्दर्भ में प्राकृत कफ को बल या व्याधिक्षमत्व का कारण माना जाता है (च.सू.17.117): प्राकृतस्तु बलं श्लेष्मा विकृतो मल उच्यते। स चैवौजः स्मृतः काये स च पाप्मोपदिश्यते।। यही कारण है कि कफज प्रकृति में उत्तम बल, पित्तज प्रकृति के व्यक्तियों में मध्यम बल तथा वातज प्रकृति के व्यक्तियों में अवर बल होता है।

💫इस प्रकार व्याधिक्षमत्व का तात्पर्य व्याधि-बल का विरोध शरीरगत बल द्वारा किया जाता है। व्याधिक्षमत्व को प्रभावित करने वाले विभिन्न भावों को दशविधि रोगी परीक्षा के भावों में भी देखा जाता है| उदहारण के लिये व्यक्ति की मूल प्रकृति का बल से सीधा सम्बन्ध होता है। सबसे उत्तम सम प्रकृति (वात-पित्त-कफज) है, परन्तु किसी जनसंख्या में समप्रकृति वाले बहुत कम होते हैं। अतः व्यवहार में कफ प्रकृति वालों को बेहतर बल वाला माना जाता है| इसके साथ ही सार भी बल को प्रभावित करता है| सारयुक्त से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति में साररूप धातुओं का नियमित निर्माण होता है। सार धातुओं के सम्यक प्रकार से उत्पन्न होते रहने पर शरीर में व्याधिक्षमत्व बढ़िया बना रहता है। जैसा कि पूर्व में चर्चा की गयी है, बल का मुख्य कारक ओज है जो सभी धातुओं का सार है| साररूप में यह सभी धातुओं में व्याप्त होकर धातुओं की रक्षा करता है। व्याधिक्षमत्व को प्रभावित करने वाले अन्य भावों में सात्म्य, सत्त्व, अग्नि, शारीरिक-शक्ति व वय हैं। अग्निबल को आहार करने की क्षमता से परखा जा सकता है| आहार-शक्ति (आहार की मात्रा) अग्निबल पर आश्रित है। यदि व्यक्ति की आहार शक्ति मज़बूत है तो भोजन का पाचन और धातुओं की पुष्टि यथोचित होने से शरीर मज़बूत रहता है। व्यायाम-शक्ति या शारीरिक रूप से श्रम करने की शक्ति भी बल का संकेतक है। व्यक्ति की वय या उम्र का भी बल से संबंध होता है। युवावस्था में उत्तम बल और जरा या बुढ़ापा आने पर बल कम रहता है।

💫व्याधिक्षमत्व बढ़ाने के लिये बल व ओज की वृद्धि में सहायक द्रव्यों और क्रियाओं का इस प्रकार युक्तिपूर्वक नियमित सेवन करना चाहिये, जिससे व्याधिक्षमत्व का संरक्षण व वृद्धि हो किन्तु प्रकृति, अग्नि, धातुओं व मलक्रिया का समत्व तथा आत्मा, इन्द्रियों व मन की प्रसन्नता यथावत बनी रहे| संक्षेप में व्याधिक्षमत्व बढ़ाने के लिये सात रक्षा-दीवारों की निरंतर और सम्यक सार-सम्हाल करना आवश्यक है| इनमें आहार या खानपान, विहार या जीवनशैली, स्वस्थवृत्त या व्यक्तिगत स्वास्थ्य विषयक क्रियायें, सद्वृत्त या व्यक्तिगत सदाचरण, पंचकर्म या शारीरिक विषाक्तता को बाहर करने के लिये आयुर्वेद की पांच प्रक्रियायें, रसायन या उम्र-आधारित रोगजनन को रोकने हेतु कायाकल्प उपाय, और अंततः औषधि या चिकित्सा शामिल हैं। परन्तु वनानुभव इन सबसे ऊपर है। प्रति सप्ताह कम से कम 168 मिनट वनों, उपवनों और हरियाली में बिताइये| यहाँ एक साथ वनवास की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन वनानुभव लीजिये। इससे इम्म्यूनिटी बढ़ने के साथ प्रसन्नता, आत्म-सम्मान, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में धनात्मक सुधार होगा। यह शास्त्र-सिद्ध, शोध-सिद्ध और स्वानुभूत है।
आलेख –
डॉ अनुपम आदित्य मिश्र
एम डी
सीवान

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देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की 139 वीं जयंती पर केएमयूएफ ने किया ब्लड शुगर जांच शिविर का आयोजन

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लोकतंत्र न्यूज़ नेटवर्क, सिवान-; सिवान की समाज सेवी संस्था कृष्ण मोहन उषा फाउंडेशन ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की 139 वीं जयंती पर ब्लड शुगर जांच शिविर का आयोजन किया।इससे पूर्व संस्था के पदाधिकारियों ने राजेंद्र बाबू के तैल चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दिया। संस्था के संस्थापक डॉ आशुतोष दिनेन्द्र ने कहा कि हमें गर्व है कि हम जीरादेई वासी हैं एवं डॉ राजेंद्र प्रसाद के कुल पुरोहित हैं। डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्र के आदर्श हैं उनकी कही एक-एक बातें हमें आत्मसात करनी चाहिए “जो बात सिद्धांत में गलत है, वह बात व्यवहार में भी सही नहीं है.”
देश के प्रथम राष्ट्रपति महान स्वतंत्रता सेनानी हमारे ग्रामीण देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 139वीं जयंती है. उनका जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। आज बहुत ही खुशी का दिन है आज ही के दिन 1972मे सिवान जिला की स्थापना की गई थी आज सिवान जनपद की स्थापना के 51 वर्ष पूरे हुए। कृष्णमोहन उषा फाउंडेशन के पदाधिकारी डॉ आशुतोष दिनेन्द्र, मनोज कुमार मिश्र, डॉ अविनाश चन्द्र सरपंच संजय सिंह अवधेश कुमार गुप्ता चंदन सिंह अनुज कुमार शर्मा गौतम माझी राजू यादव एवं मुन्ना अंसारी का सराहनीय सहयोग रहा।

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जयंती पर याद किये गए देशरत्न राजेंद्र बाबू,डीएम सहित अन्य गणमान्य ने किया माल्यार्पण

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लोकतंत्र न्यूज नेटवर्क, सिवान-; देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की 139 वीं जयंती तथा सिवान जिला के 51वें जिला स्थापना दिवस के अवसर पर प्रातः 07:00 बजे गाँधी मैदान सिवान से प्रभात फेरी निकाला गया जो जे०पी० चौक, बबुनिया मोड़ होते हुए राजेन्द्र उद्यान तक जाकर समाप्त किया गया। जिसका नेतृत्व जिला पदाधिकारी सिवान के द्वारा किया गया। मौके पर उप विकास आयुक्त सिवान, अपर समाहर्ता सिवान, अनुमंडल पदाधिकारी सिवान सदर सहित जिलास्तरीय पदाधिकारियों के साथ-साथ पुलिस कर्मी, सैकडों की संख्या में विद्यालयों के छात्र-छात्राए एवं अलग-अलग विभागों के कर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं मीडिया के प्रतिनिधिगण शामिल हुए। गाँधी मैदान में जिला पदाधिकारी सिवान द्वारा हरी झंडी दिखाकर प्रभात फेरी को रवाना किया गया। इसमें स्काउट गाइड के बच्चों के द्वारा बैंड बाजे के साथ छात्र-छात्राओं के समूह की आगवानी की गयी। राजेन्द्र उद्यान सिवान स्थित देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की प्रतिमा पर पूर्वाह्नन 08:00 बजे तदोपरांत उनके पैतृक आवास जिरादेई स्थित प्रतिमा पर पूर्वाहन 09:00 बजे श्री अवध बिहारी चौधरी माननीय बिहार विधानसभा अध्यक्ष बिहार सरकार, श्री विनोद कुमार जायसवाल माननीय सदस्य बिहार विधान परिषद, श्री मुकुल कुमार गुप्ता जिला पदाधिकारी सिवान, श्री शैलेश कुमार सिन्हा पुलिस अधीक्षक सिवान, श्रीमति संगीता चौधरी अध्यक्षा जिला परिषद् सिवान, श्री भूपेन्द्र प्रसाद यादव उप विकास आयुक्त सिवान, श्री जावेद अहसन अंसारी अपर समाहर्ता सिवान, सभी जिलास्तरीय /प्रखंडस्तरीय पदाधिकारियों के साथ-साथ उपस्थित गणमान्य लोगों के द्वारा माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।

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आप विधायकों ने केजरीवाल से गिरफ्तार होने पर भी मुख्यमंत्री बने रहने का किया आग्रह

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लोकतंत्र न्यूज़ नेटवर्क,नई दिल्ली;-

आदमी पार्टी के सभी विधायकों ने CM अरविंद केजरीवाल से दिल्ली का मुख्यमंत्री बने रहने का आग्रह किया है, भले ही उन्हें जांच एजेंसी गिरफ्तार कर ले। मुख्यमंत्री ने सोमवार को आप विधायकों की बैठक बुलाई।बैठक के बाद दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि बैठक में मौजूद सभी विधायकों ने केजरीवाल से कहा कि अगर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, तो भी वे मुख्यमंत्री बने रहें क्योंकि दिल्ली के लोगों ने उन्हें सरकार चलाने का जनादेश दिया है। हालात ऐसे लग रहे हैं कि हम भी जल्द ही जेल में होंगे। तो हो सकता है कि आतिशी को जेल नंबर 2 में रखा जाए और मुझे जेल नंबर 1 में और हम कैबिनेट की बैठकें जेल के अंदर ही करेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि दिल्ली के लोगों का काम न रुके।दिल्ली शराब नीति केस में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय ( ED) ने पूछताछ के लिए केजरीवाल को तलब किया था, लेकिन उन्होंने समन नहीं लिया।

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